राज्यसभा से भी पारित हुआ दिल्ली सेवा बिल, जानें क्यों लाया गया और क्या है इस बिल में?

First Ever News Admin
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Delhi Services Bill: बीते गुरुवार को लोकसभा से पारित होने के बाद दिल्ली सेवा बिल (Delhi Services Bill) बिल सोमवार को राज्यसभा में पेश किया गया। आपको बता दें कि पूरे दिन इस पर चर्चा हुई, और दिल्ली में सेवाओं से जुड़ा दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 संसद से पारित हो गया है। दरअसल अब इस बिल पर राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है, और इसके बाद यह कानून बन जाएगा। जिसके बाद ये बिल मई में आए अध्यादेश की जगह लेगा rn

पक्ष में 131 वोट डाले गए, वहीं विरोध में 102 वोट पड़ेrn

आपको बता दें कि दिल्ली सेवा बिल (Delhi Services Bill) के पक्ष में 131 वोट डाले गए, तो वहीं इसके विरोध में विपक्षी सासंदों की ओर से सिर्फ 102 वोट पड़े। तो वहीं राज्यसभा में वोटिंग कराने के लिए पहले मशीन से वोटिंग का प्रावधान समझाया गया, लेकिन थोड़ी देर बाद उपसभापति ने घोषणा की कि मशीन में कुछ खराबी है इसलिए वोटिंग पर्ची के जरिए कराई जाएगी। इसके बाद वोटिंग के जरिए बिल पास हो गया।rn

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क्या है इस बिल में?rn

  • आपको बता दें कि इस बिल में धारा 3A को हटा दिया गया है, धारा 3A अध्यादेश में थी। rn
  • इस धारा के अनुसार सर्विसेस पर दिल्ली विधानसभा का कोई नियंत्रण नहीं है।rn
  • ये धारा उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार देती थी, हालांकि, इस बिल में एक प्रावधान ‘नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी’ के गठन से जुड़ा है।rn
  • ये अथॉरिटी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियंत्रण से जुड़े फैसले लेगी।rn
  • इस अथॉरिटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे, उनके अलावा इसमें मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) भी होंगे।rn
  • ये अथॉरिटी जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी मामलों से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करेगी।rn
  • ये सिफारिश उपराज्यपाल को की जाएगी, इतना ही नहीं, अगर किसी अफसर के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी है तो उसकी सिफारिश भी ये अथॉरिटी ही करेगी।rn
  • अथॉरिटी के सिफारिश पर आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा, अगर कोई मतभेद होता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा।rn

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क्यों लाया गया है ये बिल?rn

आपको बता दें कि साल 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया था। इससे दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ यानी ‘नेशनल कैपिटल टेरेटरी’ का दर्जा मिला। तो वहीं इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट 1991 बना। इसके बाद 2021 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया, साथ ही केंद्र ने कहा-1991 में कुछ खामियां थीं। पुराने कानून में चार संशोधन किए गए, इसमें प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय ‘उपराज्यपाल’ माना जाएगा। साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती. rn

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वहीं दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट (SC) में चुनौती दी। और इस पर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट (SC) का फैसला आया है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है। इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी।rn

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और कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। इस अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया। इसके बाद इसी अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ये बिल लाया गया है। इस बिल में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो अध्यादेश में नहीं थी।rn

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