विपक्ष की महाबैठक: 23 जून को फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी आएंगे पटना, होंगे बैठक में शामिल

First Ever News Admin
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जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने रविवार को घोषणा की है कि जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी PDP की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी 23 जून को पटना में निर्धारित विपक्ष की बैठक में भाग लेंगी। rn

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ललन सिंह ने की ये घोषणाrn

बता दें कि ललन सिंह ने कहा, उन्होंने पार्टी के एक कार्यक्रम के दौरान यह घोषणा की पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के एक पूर्व डॉक्टर विमल करक उनकी उपस्थिति में JDU में शामिल हो गए। 18 राजनीतिक दलों के विपक्षी नेता बैठक में भाग लेने के लिए आ रहे हैं और हमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती की भी सहमति मिल गई है। वे विपक्ष की बैठक में भाग लेने के लिए भी आ रहे हैं।rn

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इससे पहले, जिन विपक्षी नेताओं ने बैठक में भाग लेने के लिए अपनी सहमति दी थी, उनमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शामिल हैं। महाराष्ट्र के मंत्री उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सीपीआई महासचिव डी. राजा, सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई (एमएल) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं।rn

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इस तरह के नारे विपक्षी एकता के लिए बन सकते हैं खतरा rn

ललन सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने वाले पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भी कड़ी आपत्ति जताई। यह तब हुआ जब कई कार्यकर्ता ‘देश का पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो’ के नारे लगाने लगे। JDU के अध्यक्ष ने कहा कि इस तरह के नारे विपक्षी एकता के लिए खतरा बन सकते हैं और नेताओं से उन्हें नहीं बोलने का आग्रह किया। rn

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इस मौके पर जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मंगनी लाल मंडल व प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी मौजूद रहे। तो वहीं सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए मंच का इस्तेमाल किया और आरोप लगाया कि देश में अघोषित आपातकाल लगाया गया है।rn

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इसके बाद सिंह ने आरोप लगाया कि, आज की स्थिति, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में, 1975 के आपातकाल से भी बदतर है। यह एक अघोषित आपातकाल है जिसमें इस सरकार ने देश के इतिहास सहित सब कुछ बदलने का फैसला किया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले “प्रेस” सहित सभी संवैधानिक संस्थान खतरे में हैं, उन्होंने भाजपा पर समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने और निर्णायक राजनीति करने का भी आरोप rn

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